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लेखक की तस्वीरTanweer adil

Hardiya Kothi: (हरदिया कोठी): अंग्रेजी हुकूमत में नील का कारखाना, अब बन चूका है खँडहर।

"हरदिया कोठी" बिहार राज्य के पश्चिम चंपारण जिले के बेतिया प्रखंड का एक छोटा सा गाँव है। यह टोला हरदिया पंचायत और तिरहुत डिवीजन के अंतर्गत आता है। यह जिला मुख्यालय बेतिया से दक्षिण की ओर 11 KM दूर और राज्य की राजधानी पटना से 170 कि.मी के दुरी पर स्थित है।


सामान्य इतिहास:

मुग़ल काल और शुरुआती ब्रिटिश काल में बिहार एक समृद्ध उद्योगिक और संम्पन्न छेत्र था, यहाँ चीनी,नील, अफीम (Opium), और शोरा (बारूद: Saltpetre) के के कारखाने थें, और ये यूरोपीयन व्यापारियों का पसंदीदा जगह बन गया था। बिहार में सबसे पहले डचों ने अपनी शोरा के कारखाने खोले, और बाद में ये उत्तरी बिहार में फ़ैल कर चीनी के कारखानों में अपना पैसा लगाया। इनके साथ फ़्रांसिसी और ब्रिटिश व्यापारियों ने भी अपने कारखाने लगाए।

चीनी उद्योग (Sugar Industry) में अंतिम उत्पाद को प्राप्त करने में लगने वाला लागत, व्यापारियों को परेशान कर रहा था और,

1850 के आस-पास निर्यात के उच्च कीमतों ने चीनी उद्योग को अंतिम झटका दिया। अब चीनी की जगह नील (Indigo) ने ले ली, और चीनी कारखानों को धीरे-धीरे नील की कारखानों में बदल दिया गया।

उन्नीसवीं सदी के चीनी के कारखाने हरदिया कारखाना, जो मूल रूप से एक "डच चीनी कारखाना" ( Sugar Factory) था, इसका अभिग्रहण 1862 में मेजर नोएल एंड कंपनी (Major Noel & Co.) से संबंधित एक समूह ने कर लिया, और इसको भी नील के कारखाने में बदल दिया गया।


(Hardiya Kothi: Indigo factory under British rule, now it has become a ruin.)

Reference:

*"Gandhi ii's First Struggle in India" by P. C. Roy 'Choudhury (Navajivan Trust, Ahmadabad),

**"Camparan and Satyagraha" by Dr. Rajendra Prasad. Autobiography of Dr. Rajendra Prasad

"Quoted in Prof. I. Q. Sinha's Economic Annals of Bengal, MacMillan and Co .• Ltd" 1927.

"Bihar District Gazetteers: Champaran (1962)"

"Bihar District Gazetteers: Muaffarpur (1960)

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